Monday, January 7, 2013

गुलाबी चूड़ियाँ और वो तोडती पत्थर

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                 कुछ बातों से अनजाने ही बचपन याद आ जाता है। ऐसी ही है नागार्जुन और निराला जी की ये कवितायें। पता नहीं कौन सी क्लास में पड़ी थी। इतना याद है की आगे गौड़ मैडम इसे समझा के सुना रही थी और मैं चुपचाप इनके संसार में कहीं खो गया था।



गुलाबी चूड़ियाँ
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोलाहाँ सा
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाईमैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!

~नागर्जुन


वो तोडती पत्थर

वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर --
वह तोड़ती पत्थर 

कोई  छायादार
पेड़वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तनभर बँधा यौवन,
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार बार प्रहार;
सामने तरु - मालिकाअट्टालिकाप्राकार 

चड़ रही थी धूप
गरमियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गयी

प्रायः हुई दुपहर,
वह तोड़ती पत्थर 

देखते देखामुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा छिन्न-तार
देखकर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोयी नहीं
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार 
एक छन के बाद वह काँपी सुघर,
दुलक माथे से गिरे सीकार,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा --
"मैं तोड़ती पत्थर"


-    निराला


Sunday, January 6, 2013

Mysterious Eyes

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Hello Miss Mysterious Eyes(ME),

I was watching Spiderman(when you were laughing on India-Pakistan match) when I realized how hard it is for an average guy to love a hot girl even when he is THE Spiderman. Ohh I deviated from the topic. SO it was not about Spiderman and MJ, it was about how I feel about you whenever I meet you or even think of meeting you. I know you would not have even seen the Spider movie though.
So again, there is a scene where Peter looks into MJ's eyes and mumbles some stuff. You know ME, I felt like he has given words to my feelings. So I will reiterate his words. 
                See ME, I never knew what bonded you with me. I am really thankful to that force or God or my destiny or whatever it is, to bring you into my life. I admire you a lot and I am really lucky to have you in my life. I know it sounds sissy J. Whenever I meet you I get super nervous and so most of the time, things go out of my hand J but you see it’s because of your eyes. Whenever I look into them, I feel stronger and weaker at the same time. I feel happy, excited and at the same time, terrified. You have beautiful mysterious eyes ME. The truth is... I don't know exactly what I feel except but whenever I am with you, I know what kind of man I want to be. And hopefully one day, I will feel myself suitable for loving you.


P.S. : It's just a nice thought that came across my mind and I wish one day I will say this to someone. :) By the way, you do have beautiful eyes.

Saturday, December 22, 2012

दाग अच्छे हैं

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मुझे इस बात का बड़ा गर्व था की मुझे कभी गुस्सा नहीं है। पर पिछले 1-2 महीनों  में अपने पूरी उम्र का quota पूरा कर लिया है। मुझे अब छोटी छोटी बातें भी irritate करने लगी है। मेरा मन अब स्थिर नहीं रहता। सहसा कोई भी ख्याल आ जाता है। कभी मैं अपने आप को दिल्ली में जॉब करता पता हूँ और कभी सुपरमैन की तरह एक ऊँची  सी इमारत के ऊपर। bike में बैठे बैठे मैं 1000 अधूरे सपनों को अक्सर पूरा होते देखता हूँ। खुश होता हूँ, उदास होता हूँ, और फिर ऑफिस आ जाता है।  ऑफिस एक ऐसी जगह है जो emotions सोख लेती है। शायद SM नहीं होती तो हम अब तक एक जिंदा लाश बन चुके होते। hollywood मूवीज के zombies  की तरह। लो! मेरा मन फिर भटक गया।

मुझे लगता है मेरी ज़िन्दगी अब मेरी नहीं रही। हाथ से निकल चुकी है। ठीक किसी काल्पनिक कहानी के उस पात्र की तरह जो सूरज ढलने से पहले एक यात्रा शुरू करता है और फिर कभी वापस नहीं आता।
कभी कभी सोचता हूँ की मेरी ज़िन्दगी का क्या मकसद है! चुपचाप करके ऐसे ही एक एक दिन काट लें। जैसे ज़िन्दगी न हो गयी, मौत का इंतज़ार हो गया।

अब शायद मुझे दूसरों की ख़ुशियों से जलन होने लगी है। facebook पे तो सब ख़ुश ही दीखते हैं। उम्मीद करता हूँ मैं किसी और दुनिया में हूँ। :)

मेरे चेहरे पर भी उम्र झलकने लगी है। कल ही किसी ने अपने नए डिजिटल कैमरे से photo लेके बताया। देख कितना क्लियर आता है इसमें। चेहरे के दाग सारे साफ़ दिख रहे हैं। "दाग अच्छे हैं" कहके मैंने बात टाल दी।

कभी सोचता हूँ ये ज़िन्दगी अगर दोबारा जी पता तो कैसी होती। फिर लगता है इस से बेहतर तो क्या होती।
मुझे येही माँ चाहिए होती। येही भाई बहन और तुम।

Thursday, December 6, 2012

तुम्हे तो पता है मेरी फोटो अच्छी नहीं आती

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तुम्हे तो पता ही है की मेरी फोटो अच्छी नहीं आती।
अच्छा!!! कभी मेरी आँखों में देखा है।
हाँ। पर वहां तो या उदासी होती है या मैं।
और नहीं तो क्या। जब तुम नहीं रहोगे तो उदासी ही रहेगी।

ह्म्म्म। शायद मेरी फोटो अब कभी अच्छी ना आये।

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अच्छी wine का असर देर से होता है।
जैसे तुम्हारी याद। अब जा के दर्द दे रही है।
और ये ख़ालीपन। जो अब भर नहीं रहा।
अब समझ में आयी तुम्हारी आँखों की उदासी।

मैंने किसी और की आँखों में देखा।
अब भी मेरी फोटो अच्छी नहीं आती।
ओह्ह। कसूर फोटो का नहीं मेरी आँखों का ही है।
न ये तब अच्छा देख पाए, न अब अच्छा देख पाएंगे।

Tuesday, November 6, 2012

नोक झोंक

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"मैं तुमसे? नहीं तो!!! क्यूँ? मैं क्यूँ करूँगा तुमसे?" उसके बार बार पूछने पे की मैं उस से प्यार करता हूँ मुझे कहना ही पड़ा। और वो फिर मूँह फूला के बैठ गयी। मुझे पता था ऐसा वो तभी करती है जब उसको थोडा नोक झोंक करने का मन करता है। उसे भी पता था की मैं ये जान जानबूझ कर कर रहा हूँ। पर कभी कभार प्यार है इसके एहसास की जरुरत होती है उसको। इसके बाद के सारे स्टेप्स एक रोबोट की भाँती follow होते हैं।
step 1: थोड़ी देर तक टेढ़ी आँख से उसको अपनी तरफ मुह फुलाए हुए तकते देखता हूँ। फिर "ठीक है बाबा करता हूँ।"
step 2: पक्का?
step 3: "हाँ बाबा पक्का।"
step 4: "कितना?"
step 5: "खूब सारा!"
step 6: "बहुत सारा वाला खूब सारा?"
step 7: "हाँ. बहुत सारा वाला खूब सारा."
step 8: हंसी ऐसे वापस आती है जैसे किसी ने बाँध का पानी छोड़ दिया हो। "फिर ठीक है।"


और फिर वो वापस अपने काम मैं लग जाती है। शायद ये उसका बचपन है जो चाहता है अपने बच्चों के साथ मैं भी उसे बच्चे की तरह ही प्यार करूँ।

तुम और शून्य

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तुम्हे पता है!!! मैं अक्सर फुर्सत लेके तुम्हें सोचता हूँ।  तुम्हें  शायद  अजीब लगता हो और शायद अजीब है भी। पर इसका भी अपना ही एक मजा है। वो ही मजा जो एक व्हिस्की का ग्लास ले के आराम से पीने मैं है  शायद वोही नशा तुम्हारी याद का है। मैं तुम्हारी याद के साथ कोई समझौता नहीं चाहता। इसीलिए जब तुम याद आती हो तो आराम से एक एक याद, याद करता हूँ।


जब तुम्हें याद करने की कोशिश करता हूँ तो मन एक टक शून्य में खो जाता है। समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू करूँ। शायद कुछ भी याद नहीं या बहुत कुछ याद करने को है। 

मुझे याद नहीं कैसे तुम्हारे बाल कभी कभी मेरे चेहरे को छू जाते थे, उनमे भीनी भीनी किसी शेम्पू की खुशबू थी जो थोड़े टाइम बाद मुझे अच्छे लगनी लगी। कौन सा शेम्पू था?
मुझे याद नहीं तुम्हारे साथ की गर्माहट मेरे वजूद को कैसे पूरा कर देती थी? मुझे तुम्हारी हथेलियों का आकार भी तो याद नहीं है। जाने कैसे वो मेरे हाथों में जगह बना लिया करती थी। जैसे पानी कैसे भी आकार ले लेता है, शायद वैसे ही  तुम्हारी  हथेलियाँ मेरी हथेलियों में समाँ जाया करती होंगी इतना पत्थरदिल मैं कैसे हो गया मेरे लिए भी ये surprise है जाने कैसे मैं भूल गया की जब तुम रोती थी तो क्या तुम मुझे गले से लगा लेती थी!!! जो मेरी शर्ट में नमी है वो तुम्हारे आँसू तो नहीं!!! क्या तुम्हारे दिल की धड़कन,जो रोते हुए मेरे सीने से महसूस  होती थी, क्या अब भी मेरे सीने में ही कहीं दफ़न है!!!

कुछ भी तो याद नहीं मुझे। सब शून्य है। तुम कौन हो, मैं कौन हूँ!