Tuesday, November 6, 2012

तुम और शून्य


तुम्हे पता है!!! मैं अक्सर फुर्सत लेके तुम्हें सोचता हूँ।  तुम्हें  शायद  अजीब लगता हो और शायद अजीब है भी। पर इसका भी अपना ही एक मजा है। वो ही मजा जो एक व्हिस्की का ग्लास ले के आराम से पीने मैं है  शायद वोही नशा तुम्हारी याद का है। मैं तुम्हारी याद के साथ कोई समझौता नहीं चाहता। इसीलिए जब तुम याद आती हो तो आराम से एक एक याद, याद करता हूँ।


जब तुम्हें याद करने की कोशिश करता हूँ तो मन एक टक शून्य में खो जाता है। समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू करूँ। शायद कुछ भी याद नहीं या बहुत कुछ याद करने को है। 

मुझे याद नहीं कैसे तुम्हारे बाल कभी कभी मेरे चेहरे को छू जाते थे, उनमे भीनी भीनी किसी शेम्पू की खुशबू थी जो थोड़े टाइम बाद मुझे अच्छे लगनी लगी। कौन सा शेम्पू था?
मुझे याद नहीं तुम्हारे साथ की गर्माहट मेरे वजूद को कैसे पूरा कर देती थी? मुझे तुम्हारी हथेलियों का आकार भी तो याद नहीं है। जाने कैसे वो मेरे हाथों में जगह बना लिया करती थी। जैसे पानी कैसे भी आकार ले लेता है, शायद वैसे ही  तुम्हारी  हथेलियाँ मेरी हथेलियों में समाँ जाया करती होंगी इतना पत्थरदिल मैं कैसे हो गया मेरे लिए भी ये surprise है जाने कैसे मैं भूल गया की जब तुम रोती थी तो क्या तुम मुझे गले से लगा लेती थी!!! जो मेरी शर्ट में नमी है वो तुम्हारे आँसू तो नहीं!!! क्या तुम्हारे दिल की धड़कन,जो रोते हुए मेरे सीने से महसूस  होती थी, क्या अब भी मेरे सीने में ही कहीं दफ़न है!!!

कुछ भी तो याद नहीं मुझे। सब शून्य है। तुम कौन हो, मैं कौन हूँ!

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